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Introduction
The word Bandha means tying a bond, tie, chain, binding, to catch, fix, hold back, clot, lock, redirect, close, shut, etc. It denotes the position which close the body apertures and where the finger helds, together with special hand features. There are three basic Bandhas Mula Bandha, Uddiyana Bandha and Jalandhara Bandha. Together these three Bandha are known as Tri- Bandha.
Starting Position: Meditation Pose or Standing
Concentration: On the Manipura Chakra
Breath: Completely exhale and hold the breath out
Repetitions: 3- 5 rounds
Procedure of Uddiyana Bandha
- Completely exhale and hold your breath out.
- Place the hands on the knees, raise the shoulders and tilt the body forward slightly, keeping the back straight. (To practice this Bandha standing, separate the legs a little and bend the knees slightly.)
- Concentrate on the Manipura Chakra and pull the abdominal muscles in and up into the abdominal cavity as far as possible.
- Hold the position as long as comfortable.
- Release the muscular tension and return to the starting position with a deep inhalation.
- Breathing normally remains for some time in this position.
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- Dr. Sahil Gupta (B.A.M.S., M.H.A.)
Ayurvedic Allergy Specialist
CEO & Founder of IAFA®
Benefits of Uddiyana Bandha
Activates the Manipura Chakra and solar plexus. Stimulates intestinal activity and helps relieve constipation. Stimulates the pancreas and is helpful for diabetes. Strengthens the immune system. Balances the mind, soothes irritability and anger, and dispels a depressive mood.
Uddiyana Bandha – According to Classical Texts
Gherand Samhita, by commentator Acharya Shri Nivaas Sharma, Tritya Updesh, 10
उड्डीयान बन्ध:
उदरे पश्चिम तानं नाभेरूदुर्ध्वन्तु कारयेत् |
उड्डीयान॑ तु कुरुते यत्तद्विश्रान्त॑ महाखग: |
उड्डीयान॑ त्वसौ बन्धो मृत्युमातड्केशरी ||
नाभि के ऊपर उदरभाग को पीछे की तरफ अर्थात् भीतर की ओर बलपूर्वद संकुचित करने अर्थात् खींचने और प्राणवायु को उड्डीयान करने अर्थात् उठाने पर अविकल ब्रह्म रंध्र के आकाश में प्राणवायु का गमन होने ( योगिगणों द्वारा विधि पूर्वक उड्डीयान बन्ध के आश्रयण द्वारा आकाश में भ्रमणकरने ) पर साधक को महाखग अर्थात् गरुड़ के सद्श आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। इसी का नाम उडडीयान बन्ध है। यह उड्डीयान बन्ध मृत्युरूपी मातंग केशरी अर्थात् हाथी के लिए सिंह के समान होता है |
(On the movement of Pranavayu in the sky of the unbroken brahmandhra on the movement of prana vayu in the sky by the yogis by the ritualistic support of the uddiyana bandha, after forcefully compressing the abdomen above the navel i.e., inwards inwards, that is, by pulling and lifting the prana vayu to uddiyana. Sadhak gets the power to fly in the sky like the Mahakhag i.e. Garuda. This is called Uddiyana Bandha. This Uddiyana bandha is like the Matang Keshari of death, that is, a lion for an elephant.)
Gherand Samhita, by commentator Acharya Shri Nivaas Sharma, Tritya Updesh, 11
उड्डीयान बन्धफलकथनम्
समग्रा द्वन्धनाद्व्येतदुड्डीयान॑ विशिष्यते ।
उड्डीयाने समभ्यस्ते मुक्ति: स्वाभाविकी भवेत् ||
जितने प्रकार के बन्ध कहे गये हैं, उन सबमें इस उड्डीयान बन्ध की यह सर्वातिशायी विशेषता है कि सम्यक् प्रकार से इसका अभ्यास होने से अनायास ही मुक्ति की प्राप्ति सम्भव हो जाती है ||
(Of all the types of bandhas that have been said, this is the most powerful feature of this Uddiyana bandha that by practicing it in the right way, it becomes possible to attain liberation unintentionally.)
Shiva Samhita
शिवसंहिता, में उड्डियान बन्ध के अभ्यासस्वरूप प्राप्त होने वाले फल का इस प्रकार निरूपण किया गया है- (In the Shiva- Samhita, the result obtained as a result of the practice of Uddiyana Bandha has been described as follows:)
नित्यं यः कुरुते योगी चतुर्वारं दिने दिने |
तस्य नाभेस्तु शुद्धि: स्याधेन शुद्ध भवेन्मरुत |
षण्मासमभ्यसन् योगी मृत्युं जयति निश्चितम् |
तस्योदरा अग्नि ज्वलति रसवृद्धिस्तु जायते ||
रोगाणां संक्षयशापि योगिनों भवति ध्रुवं |
गुरोवद्धातुयत्नेन साधयेच्च विचक्षणम् |
निर्जने सुस्थिते देशे बद्ध॑परमदुर्लभम् ||
आशय यह है कि जो योगी नित्यप्रति चार बार प्रकृत उड़ीयान बन्ध का अभ्यास करते हैं, उनको नाभिशुद्धि एवं मरुत सिद्धि की प्राप्ति होती है। निरन्तर छ: मास तक इसका अभ्यास करने से योगी मृत्यु को भी पराजित करने में समर्थ हो जाता है। जो लोग इसकी साधना करते हैं, उनकी जठरार्न प्रजज्वलित होती है एवं उनके शरीर में पुष्टि का रसों की भी अभिवृद्धि होती है। बुद्धिमान, साधक को गुरु से उपदिष्ट होकर एकान्तस्थान में अवस्थित होकर अत्यन्त दुर्लभ इस उड़ीयान बन्ध का अभ्यास करना चाहिये।
(The meaning is that yogis who practice Prakrit Udiyana Bandha four times a day, they attain nabhishuddhi and marut siddhi. By practicing it continuously for six months, a yogi becomes capable of defeating even death. Those who do this sadhna, their stomach gets ignited and the juices of confirmation also increase in their body. An intelligent sadhak should practice this very rare Udiyana bandha after being instructed by the Guru and situated in a secluded place.)
Datta Treya Samhita
दत्ता त्रिया संहिता में तो यहाँ तक कहा गया है कि इस बन्ध के सतत अभ्यास से मनुष्य वृद्धत्व से मुक्त होकर पुनः यौवन को प्राप्त कर लेता है|
(In the Datta Triya Samhita, it has been said that by the continuous practice of this bandha, a person becomes free from old age and attains youth again)
अभ्यसेद्यस्तु सत्वस्थो वृद्धोधपि तरुणायते |
षण्मासमभ्यसन्मत्य॑ जयत्येव न संशय: ||
Hath Yoga Pradipika, by Swami Shri Dwarika Das Shastri, tritya Updesha, 55
उड्डीयान बन्ध:
बद्धो येन सुषुम्नायां प्राणस्तूड्टीयते यतः|
तस्माद् उड्डीयानाख्योज्य॑ योगिभि: समुदाहतः ||
उड्डीयान शब्द की निरुक्ति- जिस बन्धन से बंधा हुआ प्राण वायु सुषुम्ना में आकाश मार्ग से जाता (उड़ता) है, इस कारण यह बंधन मत्स्येन्द्र नाथ आदि योगिसिद्धों द्वारा उड्डीयान बन्ध कहा गया है |
(Nirukti (Etymological derivation) the word Uddiyana – The bond by which the life bound in the air passes through the sky in Sushumna, that is why this bond has been called Uddiyana Bandha by Matsyendra Nath etc. Yogisiddhas.)
Hath Yoga Pradipika, by Swami Shri Dwarika Das Shastri, tritya Updesha, 56
उड्डीन॑ कुरुतें यस्मादविश्रान्त॑ महाखग: |
उड्डीयान॑ तदैव स्यात्, तत्र बन्धो अभिधीयते ||
क्योंकि इस महाबन्ध के कारण योगी का प्राण वायु गतियुक्त होने से देहरूप आकाश में निरंतर एक बलवान पक्षी के समान उड़ता रहता है |
(Because of this great bondage, the soul of the yogi, being in motion in the air, continues to fly like a mighty bird in the sky in the form of a body.)
Hath Yoga Pradipika, by Swami Shri Dwarika Das Shastri, tritya Updesha, 58
उड्डीयान॑ तु सहज गुरुणा कथित सदा |
अभ्यसेत् सतत यस्तु वृद्धोजपि तरुणायते ||
इस बन्ध के सतत अभ्यासी की सदा युवकवत् प्रतीति–हितोपदेश है गुरुदेव ने इस बन को योगी के लिये सहज (स्वाभाविक) बंध कहा है, क्योंकि साधारण मनुष्य भी इस का स्वाभाविक रीति से अभ्यास कर सकता है। अतः इसका सतत अभ्यासी वृद्ध योगी भी सदा तरुण (नवयुवक) के समान आचरण करने वाला होता है ||
(The perpetual practitioner of this bandha always has a youthful realization-hitopadesha. Gurudev has called this bond as Sahaj (natural) for the yogi, because even an ordinary man can practice it naturally. Therefore, an old yogi who is constantly practicing it is always going to behave like a young man.)
Hath Yoga Pradipika, by Swami Shri Dwarika Das Shastri, tritya Updesha, 59
नाभेरूध्वमधश्चापि तान॑ कुर्यात् प्रयत्नत: ।
‘घण्मासमभ्यसेन्मृत्युं जयत्येव न संशय: ||
मृत्युजय- यदि योगी इसी बन्ध के अभ्यासकाल में नाभि के ऊर्ध्व भाग तथा अधोभाग को, प्राणवायु के आकर्षण द्वारा, पृष्ठभाग से सम्पृक्त करता रहे तो वह योगी, छह मास तक इसका अभ्यास करने के बाद, अपनी मृत्यु पर भी विजय पा लेता है ||
(Mrityunjay – If a yogi keeps on contacting the upper part of the navel and the lower part of the navel with the attraction of Pranavayu during the practice of this bandha, then that yogi, after practicing it for six months, also conquers his death.)
Hath Yoga Pradipika, by Swami Shri Dwarika Das Shastri, tritya Updesha, 60
योगी की स्वाभाविक मुक्ति
सर्वेषमेव बन्धानामुत्तानो ह्लुद्धियानक: ।
उड़ियाने दृढ़ बन्धे मुक्ति: स्वाभाविकी भवेत् ||
उड्डीयान॑ त्वसौ बन्धो मृत्युमातड्केशरी ||
नाभि के ऊपर उदरभाग को पीछे की तरफ अर्थात् भीतर की ओर बलपूर्वद संकुचित करने अर्थात् खींचने और प्राणवायु को उड्डीयान करने अर्थात् उठाने पर अविकल ब्रह्म रंध्र के आकाश में प्राणवायु का गमन होने ( योगिगणों द्वारा विधि पूर्वक उड्डीयान बन्ध के आश्रयण द्वारा आकाश में भ्रमणकरने ) पर साधक को महाखग अर्थात् गरुड़ के सद्श आकाश में उड़ने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। इसी का नाम उडडीयान बन्ध है। यह उड्डीयान बन्ध मृत्युरूपी मातंग केशरी अर्थात् हाथी के लिए सिंह के समान होता है |
(On the movement of Pranavayu in the sky of the unbroken brahmandhra on the movement of prana vayu in the sky by the yogis by the ritualistic support of the uddiyana bandha, after forcefully compressing the abdomen above the navel i.e. inwards inwards, that is, by pulling and lifting the prana vayu to uddiyana. Sadhak gets the power to fly in the sky like the Mahakhag i.e. Garuda. This is called Uddiyana Bandha. This Uddiyana bandha is like the Matang Keshari of death, that is, a lion for an elephant.)
Gherand Samhita, by commentator Acharya Shri Nivaas Sharma, Tritya Updesh, 11
उड्डीयान बन्धफलकथनम्
समग्रा द्वन्धनाद्व्येतदुड्डीयान॑ विशिष्यते ।
उड्डीयाने समभ्यस्ते मुक्ति: स्वाभाविकी भवेत् ||
जितने प्रकार के बन्ध कहे गये हैं, उन सबमें इस उड्डीयान बन्ध की यह सर्वातिशायी विशेषता है कि सम्यक् प्रकार से इसका अभ्यास होने से अनायास ही मुक्ति की प्राप्ति सम्भव हो जाती है |
(Of all the types of bandhas that have been said, this is the most powerful feature of this Uddiyana bandha that by practicing it in the right way, it becomes possible to attain liberation unintentionally.)
Uddiyana Bandha in Classical Literature
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